कोविड-19 संग जीने के लिए
प्रासंगिक सुझाव
जैसे जैसे दिन बीते जा रहे हैं हमारे दिलों में यह बात घर
कर रही है की करोना से छुटकारा संभव नहीं है। किसी भी विषाणु रोधक वैक्सीन के ना
मिलने पर दिमाग में यह भावना और भी सुदृढ़ होती जा रही है।
ऐसे में केवल यही सांत्वना है की मृत्यु दर कम है यद्यपि
हमें इस बारे में एक झूठा दिलासा ही मिल रहा है क्योंकि जो मृत्यु दर हमें बताई जा
रहा है वो संक्रमितों की कुल संख्या पर आधारित है न कि उन पर, जिन का उपचार पूर्ण हो
चुका है।
10 जून 2020 की शाम 9:00 बजे तक देश में कोरोना वायरस के 2,86,257 केस पॉजिटिव पाए गए जिनमें से 8078 की मृत्यु हो चुकी है 1,40,484 स्वस्थ हो चुके है और
बाकी 1,37,680 अभी भी प्रभावित हैं जिनका उपचार चल रहा है। अतः हमें मृत्यु दर 2.82% बताई गई है यानी करोना की पुष्टि होने वाले लोगों की कुल संख्या पर आधारित।
परंतु यह तो गुमराह करने वाली बात है वास्तव में 1,48,562 लोगों का उपचार पूर्ण किया गया है जिनमें से 8078 की मौत हो गई है और 1,40,484 इससे ठीक हो चुके हैं अतः वास्तविक मृत्यु दर 5.44 प्रतिशत है। पिछले 10 दिनों में संक्रिमतों की संख्या में एक लाख की बृद्धि हुई है |
भयावह इसकी मृत्यु दर नहीं परंतु अधिक भयानक है इस वायरस की जल्दी
से जल्दी फैलने की क्षमता। यदि इसके विस्तार को प्रभावशाली ढंग से रोका नहीं गया
तो यह पूर्ण मानव जाति को अपनी चपेट में लेने की क्षमता रखता है ।यह एड्स और प्लेग
जैसी बीमारियों से भी ज्यादा भयानक हो रहा है। कोई भी, कहीं पर भी, इससे संक्रमित
हो सकता है जिससे इसका अधिक भयंकर होने का
आभास होता है ।
विशेषज्ञों की राय क्या है:
इस वायरस से उपचार के लिए किसी भी प्रभावपूर्ण दवाई या रोकथाम के अभाव में
संपूर्ण मानव जाति को यह स्वीकारना होगा कि यह वायरस स्थाई तौर पर रहेगा और हमें
इसके साथ ही रहना (……या मरना?) सीखना होगा। इस को फैलने से रोकने के लिए निस्संदेह
पूर्ण लॉक डाउन ही एकमात्र प्रभावी तरीका है। करनी से कथनी आसान है। आज के
भौतिकवादी विश्व, जो अर्थ-शास्त्र पर आधारित है, में पूर्ण लॉक डाउन हासिल करना
असंभव है । विशेषतः इतने लंबे और अनिश्चित
काल तक। विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना की चेन को तोड़ने के लिए 14 दिन की अवधि काफी है क्यो कि 90% केसिज़ में
संक्रमण के लक्षण 7 से 10 दिनों में दिखाई देने लग जाते हैं।
भारत सहित विश्व में लॉक
डाउन की सफलता को विभिन्न स्तरों में देखा गया है,
सबसे कम प्रजातांत्रिक देशों में और सबसे ज्यादा एक तंत्र
वाले देशों में ।
भारत में वर्तमान परिदृश्य
कोरौना के हमले के कारण भारत इस
साल 25 मार्च से पूर्ण लौकडाउन में था। यह कदम सही समय, सही नियत और सही कड़ाई से लागू किया गया और इससे सकारात्मक परिणाम भी देखने को
मिले। समय के चलते कुछ चीजें गलत होती गई जोकि ढीली-ढाली रस्सी जैसी नरम लोकतंत्र
वाले, भारी भरकम देश के लिए असंगत नहीं
था। जमात और प्रवासी मजदूरों ने सरकारी कोशिश की चमक को धूमिल कर दिया।
यह कार्यवाई पूर्ण सफल हो सकती
थी यदि सरकार ने प्रजातांत्रिक प्रक्रियाओं को रोककर, व्यक्तिगत आजादी को प्रतिबंधित करके और प्रसारण माध्यम को बोलने पर रोक लगा कर,
6 माह की राष्ट्रीय आपदा घोषित कर ली होती। यद्यपि मैं जानता हूं कि किसी भी
राजनीतिक पार्टी में ऐसा करने का साहस नहीं है (....... या इसके लिए इंदिरा जी की
आवश्यकता है?)
परंतु जैसे मैंने पहले कहा लॉक
डाउन ने अर्थव्यवस्था को भी ब्लॉक डाउन किया है और किसी भी देश, चाहे विकसित हो या विकासशील, के लिए इतने लंबे समय तक लॉक डाउन
जारी रखना मुश्किल है| जून के महीने में
लॉक डाउन से राहत मिली इसलिए नहीं कि हमने कोरौना पर विजय पा ली है, बल्कि
इसलिए कि हम थक चुके हैं और इसे जारी रख पाना संभव नहीं है।
अपेक्षित परिणाम
मई महीने के मैं 21 से 28 तारीख तक 40-45 डिग्री तक तापमान के
कारण, कोरोना के प्रसार
दर में कमी आने की आशा थी तथापि ऐसा हुआ नहीं| जुलाई महीने में हालात और तेजी से बिगड़ने की प्रबल
सम्भावना है। एक बार जब लॉक डाउन को पूर्ण रूप से खत्म कर दिया जाएगा और सरकार को
फिर से मजबूरन अनियोजित लॉक डाउन के परीक्षित उपचार
को लागू करने के लिए बाध्य होना होगा। अचानक किये गए लॉक डाउन से फिर अफरा-तफरी का माहौल बनेगा जो न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए आत्म-घातक
सिद्ध होगा वरन महामारी को रोकने में भी अक्षम होगा|
उपचार का अकाट्य नुस्खा
इसमें कोई संशय नहीं की कोरोना वायरस कुछ वर्ष तो रहेगा ही।
यह भी हम जानते है कि संक्रमण की चेन को तोड़ने के लिए 14 दिनों तक सुनिश्चित दूरी का सख्ती से पालन करना जरूरी है| हम यह भी जानते हैं कि इस समय लोक डाउन ही केवल एकमात्र उपचार उपलब्ध है। तो फिर क्यों न लॉक डाउन को
ही अपने आर्थिक और प्रशासनिक प्रक्रिया के साथ जोड़ दिया जाए और इसे अपने जीवन का
एक अंग ही मान लिया जाये। हम इसे नियोजित लॉक डाउन कह सकते हैं। और फिर
उपलब्ध EXIT योजनाओं की अलग से आवश्यकता भी नहीं
होगी।
मेरा सुझाव है कि यदि हम
जुलाई के अंत तक वायरस को पूरी तरह नियंत्रित नहीं कर पाते हैं तो अगस्त 2020 से हर दूसरे महीने यानि एक महीना छोड़कर 14 दिनों का पूर्ण लॉक लॉक डाउन जारी करें ।
पूर्ण, मतलब
पूर्ण। इस तरह हमारे पास इस साल 1 से 14 अगस्त,
1 से 14 अक्टूबर और 1 से 14 दिसंबर तक पूर्ण लॉक डाउन होगा और इसी तरह अगले वर्ष भी। जब तक कि यह
देशव्यापि महामारी नियंत्रित नहीं हो जाती। यह 14 दिनों की द्विमासिक छुट्टी की भांति कार्य करेगा ।
हालांकि लॉक डाउन की अनुक्रमिक
मध्यवर्ती अवधि मे सामान्य क्रियाओं और
सामान्य सावधानियों,
जैसे पारस्पारिक दूरी, मास्क और सैनिटाइजर का प्रयोग आदि का पूर्ण पालन किया
जाना चाहिए ।ऑरेंज और रेड जो़न तथा
क्वांरटाइन क्षेत्रों से संबंधित सभी सावधानियों को भी जारी रखने की आवश्यकता
होगी।
नियोजित लॉक डाउन के लाभ
उपरोक्त उपायों से संक्रमण
चेन को तोड़ने की अति आवश्यक राह मिलेगी जो वायरस के नियंत्रण के लिए आवश्यक है। लौकडाउन
की तारीखों का पहले से ही पता होगा तो
उससे आर्थिक और सामाजिक तथा शैक्षिक
गतिविधियों को तदानुसार पूर्व नियोजित करने में भी मदद मिलेगी ।
प्रवासी मजदूरों और बाहर से आने वाले नागरिकों आदि की
समस्या का भी समाधान हो जाएगा। मज़दूर, छात्र और कर्मचारी या तो उसी जगह पर रुक सकेंगे जहां काम करते हैं या अपने घर
के नजदीक ही नौकरियां ढूंढ लेंगे ताकि लॉक डाउन आरंभ होने से पहले वह अपने घर
आसानी से पहुंच सकें ।
लॉक डाउन के खत्म होने पर सदूर
बाहर फंसे लोगों को घर पहुंचने की जो लालसा बनी रहती है वह भी किसी हद तक कम होगी।
भूख की समस्या भी नहीं रहेगी क्योंकि आवश्यक और खाद्य वस्तुओं को 14 दिनों तक संग्रहित किया जा सकता है ।
इससे
वायरस पर सशक्त प्रहार करने के लिए प्रशासनिक प्रणाली को फिर से तैयार होने का समय
मिलेगा।
रेल, हवाई जहाज और दूसरे यातायात के
साधनों का संचालन 15वें दिन से स्वत: होना चाहिए। इससे लोगों को यात्रा और पहले से ही बुकिंग आदि
नियोजित करने में सहायता मिलेगी ।
प्रतिवर्ष छः बार 14 दिनों के द्विमासिक
विराम का अर्थशास्त्र:
इस प्रस्तावित लोक डाउन
से हरेक लोक डाउन में केवल 10 कार्य दिवस ही कम होंगे (दो शनिवार और दो रविवार को छोड़कर)| यह एक साल में
यह सिर्फ 60 दिन ही बैठते हैं।
अब यदि हम सभी शनिवार को
काम करने के लिए चुनते हैं तो एक साल में हमारे पास 40 अतिरिक्त शनिवार काम करने के लिए मिल
जाते हैं। अतः लॉक डाउन में हमें एक साल में केवल 20 कार्य दिवस ही कम मिलेंगे , जो जीवित रहने के लिए
बहुत भारी कीमत नहीं है। इस अंतराल को कम करने के लिए हम दूसरी अनावश्यक छुट्टियों
को कम कर सकते हैं ।
हमारे नीति निर्धारक
और जिन सज्जनों पर निर्णय लेने की जिम्मेवारी है, पहले से ही इस विकट परिस्थिति से निपटने के लिए प्रयासरत होंगे, पर मुझे आशा है कि वे मेरे सुझावों पर भी रचनात्मक तौर पर अवश्य गौर फरमाएँगे।
क्योंकि वक्त दौड़ता जा रहा है, अतः शीघ्रम
अत्यावश्यक।
ओ.सी. ठाकुर
आई.पी.एस. (रि०) हि.प्र.
(मूलतः अंग्रेजी में लिखे गए इस ब्लॉग को, मेरे मित्र श्री चन्द्र शेखर भरद्वाज
की धर्म-पत्नी श्रीमती ललिनी भारद्वाज ने हिंदी में अनुवाद करके, मुझे अनुग्रहित किया|)
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