कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र को ‘न्याय पत्र’ नाम दिया है। अपना
वोट देने से पहले दो बार सोचें कि क्या आप काँग्रेस के प्रत्याशी को वोट देकर कहीं
देश को संकट में तो नहीं डाल रहे? मैं यहाँ सिर्फ उन तथ्यों की विवेचना करूंगा जिन
का पार्टी ने अपने घोषणापत्र में लिखा है कि अगर उन की सरकार बनी तो वे उन घोषणाओं
को कार्यान्वित करेंगे।
1.
सामाजिक व आर्थिक सर्वे
कांग्रेस सरकार
भारत का आर्थिक सर्वे करवाएगी और उसके बाद धन-सम्पति का पुनर्वितरण करेगी। जनसंख्य
के एक बड़े भाग को सामाजिक न्याय का यह वादा काफी आकर्षक लगेगा। यही सोच के काँग्रेस
ने यह जाल फैंका है। लेकिन देश को कालांतर में कितना नुकसान होगा ये कल्पनातीत है।
आरंभ में विश्व में साम्यवाद के विस्तार का कारण भी यही आकर्षण था। लेकिन कुछ ही समय
में साम्यवाद के नुकसान सामने आने लगे। सोवियत यूनियन की आर्थिक दशा के पतन के साथ
ही सोवियत यूनियन का भी पतन हो गया। इस से
चीन ने सबक सीखा और साम्यवादी राजतन्त्र के बीच खुली अर्थव्यवस्था को पनपने दिया। इस
प्रकार आज साम्यवादी समाजवाद अतीत की बात हो गई। यहाँ तक कि भारत में भी कांग्रेस की
नरसिम्हा राव की सरकार ने खुली अर्थ-व्यवस्था अपना कर देश की प्रगति को गति दी।
लेकिन राहुल
गांधी घड़ी को पीछे घूमा कर, साम्यवादी व्यवस्था को गणतंत्र में पिछले दरवाजे से लाना
चाहते हैं जबकि इस तरह के धन के पुनर्वितरण के दुष्प्रभाव सारा विश्व जानता है। वोटों
के लिए जानबूझ कर वे ये जोखिम उठाने के लिए तत्पर दिख रहे हैं।
2. जातिगत
जनगणना:
यह कांग्रेस
घोषणापत्र का दूसरा बड़ा वादा है कि दलितों व पिछली जातियों की आर्थिक स्थिति जानने
के लिये भारत में जातियों की जनगणना कारवाई जाएगी। वस्तुतः यह विचार पार्टी ने समाजवादी
पार्टी से चुराया है जो कि जातिगत राजनीति के लिए कुख्यात है। जाहिर है यह वादा भी
दलितों व पिछली जातियों, जिन की भारत में एक बड़ी संख्या है, के बीच आकर्षक रहा होगा।
लेकिन भविष्य में इसके दुष्प्रभाव के बारे में जानना आवश्यक है।
1951 से 2011
तक की सभी जनगणनाओं में SC/ST की गणना की जाती रही है प्रकाशित भी की जाती रही
है। लेकिन अन्य जातियों के बारे में डाटा प्रकाशित नहीं किया जाता। सन 1941 में अंतिम
जातिगत जनगणना हुई थी लेकिन इस के दुष्प्रभावों के देखते हुए रिपोर्ट कभी प्रकाशित
नहीं की गई। 2011 की जनगणना में पाया गया कि भारत
में लगभग 46 लाख जातियाँ व उपजातिया हैं।
कांग्रेस द्वारा
इस जनगणना का उद्देश्य यह जानने का है कि सरकारी नौकरी व अन्य सामाजिक व आर्थिक कल्याण
योजनाओं में विभिन्न जातियों की भागीदारी कितनी है। प्रत्यक्ष रूप से यह जानने में
कोई बुराई नहीं दिखती। लेकिन इस का दूसरा आवश्यक पक्ष यह है कि यह सूचना जानने के बाद
पार्टी चाहती है कि जातियों व समुदायों की नौकरी और योजनाओं में भागीदारी उन की संख्या
पर निर्भर करे। यानि जिसकी जितनी संख्या भारी, उतनी उस की हिस्सेदारी। लेकिन इस सिद्धांत
के दुष्परिणाम रोंगटे खड़े करने वाले है। चलिए जानते है: -
क) इस से
सामाजिक एकता खंड-खंड हो जाएगी। इस योजना को विशेष रूप से हिन्दू समाज में दरारें
पैदा करने के लिए लाया जा रहा है। दलितों की जनगणना तो की ही जाती है जिसके अनुरूप उन्हें नौकरी
व योजनाओं में प्राथमिकता दी जाती है।
ख) इस योजना के लिए कांग्रेस दलितों की भांति मुसलमानों
को नौकरियों में आरक्षण देने कि बात करती
है। लेकिन इस के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आरक्षण की 50% सीमा को हटाना आवश्यक हो जाएगा, जिस
के लिए पार्टी देश के संविधान में संशोधन करने के लिए तैयार है। इस सीमा के चलते अभी कर्नाटक में मुसलमानों
को आरक्षण OBC कोटे से देना पड़ रहा है। राहुल
ने अपने भाषणों में बताया है कि वे आरक्षण को 70% या इस से अधिक भी ले जा सकते हैं।
दलितों
व अन्य पिछड़ी जातियों को समझना चाहिए कि इस नई व्यवस्था से उन्हे हानि ही होगी। वर्तमान
व्यवस्था में ये लोग आरक्षित रिक्तियों के अतिरिक्त 50% अनारक्षित रिक्तियों में भी
नौकरी पा सकते हैं जबकि नई व्यवस्था में ऐसा संभव नहीं होगा। मैंने, बतौर SP और DIG हजारों भर्तियाँ
की हैं और अपने अनुभव से कह सकता हूँ कि दलितों व अन्य पिछड़ी जातियों के सेंकड़ों अभ्यर्थी
आरक्षित कोटा के इलावा, 50% सामान्य वर्ग कोटा में मेरिट पर चयनित हुए है।
ग) ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उतनी उस की हिस्सेदारी’
के सिद्धांत पर अपनी जाती व समुदाय की संख्या में बृद्धि करने की एक होड़ लग जाएगी जो
देश व समाज के लिए घातक होगा। परिवार नियोजन को धक्का लगेगा। मुसलमानों की जनसंख्य
पहले ही आजादी के बाद से अब तक 43% बढ़ी है जबकि हिंदुओं की संख्या इसी कालखंड में लगभग
6% घट गई। कांग्रेस की उपरोक्त पॉलिसी से इस बृद्धि को और बल मिलेगा क्यों कि यही एक
समुदाय ऐसा है जिस की संख्या में बृद्धि तीन कारणों से हो रही है। वे है: उच्च जन्म
दर, जिस में बहु-विवाह व आसान तलाक एक कारण है। दूसरे अवैध घुसपैठ, जिस के कारण आसाम,
बंगाल व उत्तरपूर्वी राज्यों का जनसंख्यक संतुलन गड़बड़ गया है। तीसरा कारण है धर्म-परिवर्तन,
जिस के लिए इस समुदाय द्वारा कई तरीके अपनाए
जा रहे हैं।
3. गरीब परिवार की महिला को एक लाख रु वार्षिक:
इस योजना से
श्री राहुल देश से गरीबी खटाखट हटाना चाहते है। ये भी एक आकर्षक योजना है। भारत में
अनुमानतः लगभग 8 करोड़ परिवार गरीबी रेखा से नीचे हैं। अतः सरकर एक वर्ष में लगभग 8
लाख करोड़ रु खर्च करेगी और गरीबी दूर हो जाएगी। काश, ये गणित की तरह इतना आसान होता। लगभग इतनी ही
संख्या उन लोगों की है जो अभी अभी गरीबी रेखा से ऊपर आए हैं। जब वे देखेंगे कि कल तक
जिनकी आय उनसे कम थी, वे उनसे अधिक रुपए बिना कुछ किए ले रहे हैं तो उनकी कमाने की
शक्ति में कमी आएगी और अगले ही वर्ष वे भी गरीबी रेखा से नीचे चले जाएंगे। जो लोग एक
वर्ष तक 8,000 रु मासिक ले रहे थे उन में से अधिकांश इस आय के बंद होने के बाद फिर
से गरीबी रेखा से नीचे चले जाएंगे। इस प्रकार तीसरे वर्ष 8 के बजाए 10-12 करोड़ परिवार
एक लाख रुपए पाने के अधिकारी बन जाएंगे। और यह सिलसिला ऐसे ही जारी रहेगा और गरीबों
की संख्या बढ़ती रहेगी।
अतः मुफ़्त
के पैसे से गरीबी दूर होना दूर की कौड़ी है। आवश्यकता नए रोजगार के अवसर पैदा कर के
इन परिवारों को सशक्त करने की है।
4. तुष्टीकरण
नीति की वापसी :
इस के अतिरिक्त,
यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध, CAA, अनुच्छेद 370 को वापिस लेने की बात मुस्लिम तुष्टीकरण के सशक्त उदाहरण हैं।
घोषणा पत्र में सपष्ट कहा गया है कि कांग्रेस
विभिन्न समुदायों के व्यक्तिगत कानून (Personal Law) को बढ़ावा
देगी। यह मोदी सरकार के समाज में एकरसता लाने के प्रयासों से ठीक उलट है। यह मुसलमानों
की बफादारी खरीदने के लिए देश को कीमत चुकाने जैसा है।
---0---
Good dissection of Congress manifesto
ReplyDelete