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चुनाव 2024 - विपक्ष द्वारा प्रचारित सदाबहार झूठ

           आम चुनाव 2024 घोषित हो चुके हैं। सभी राजनीतिक दल चुनावी प्रचार में व्यस्त हैं। सभी दलों द्वारा वोटरों को लुभाने के लिए, एक ओर संभव और असंभव घोषणाओं का सहारा लिया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर, सत्य एवं असत्य आरोपों की झड़ी लगाई जा रही है। मैं मोदी का प्रशंसक रहा हू। इसलिए मेरे कांग्रेस व अन्य दलों के मित्र इस लेख की तटस्थता पर आक्षेप करेंगे। यह किसी सीमा तक तार्किक भी हो सकता है। लेकिन मैं तथ्यों के प्रस्तुतीकरण में यथा संभव तटस्थ रहने का प्रयत्न करूंगा। इस लेख में हम कांग्रेस व इसके सहयोगियों द्वारा प्रचारित सदाबहार आरोपों की वस्तुस्थिति जानने का प्रयत्न करेंगे। तब तक पाठक, उनकी दृष्टि में भाजपा अथवा मोदी जी द्वारा प्रसारित झूठों पर मुझ से स्पष्टीकरण मांग सकते हैं।

1.    मोदी का हर एक व्यक्ति को 15 लाख देने का वादा :

2.   2 करोड़ नौकरी के वादे पर भाजपा सरकार पूरी तरह विफल:

3.   महंगाई कमर-तोड़: (गैस सिलिन्डर)

4.   पेट्रोल-डीज़ल की अनियंत्रित महंगाई:

5.   किसानों की आय को दुगना करने का वादा:

6.   देश पर भरी कर्ज:

7.   अदानी – अम्बानी  की सरकार और अमीरों का कर्ज माफ:

8.   नोटबंदी से अर्थ-व्यवस्था चौपट हुई:

9.   रुपए का भारी अवमूल्यन :

10. लोकतंत्र खतरे में, मोदी तानाशाह:

11.  CBI और ED का सरकार द्वारा दुरुपयोग:

12. चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds) भाजपा का बड़ा घोटाला:

13. बढ़ता गौमांस निर्यात और एक बड़ी निर्यातक कंपनी से चुनावी चन्दा।

14. भाजपा सरकार सिर्फ जुमलों की सरकार:भाजपा द्वारा हिन्दू ध्रुवीकरण का प्रयास:

15. चीन द्वारा भारतीय सीमा पर अतिक्रमण:

16. तीस लाख सरकारी नौकरियां

          अब इन विषयों का तथ्यात्मक विश्लेषण करते हैं:-

1.   मोदी का हर एक व्यक्ति को 15 लाख देने का वादा :

         किसी झूठ को बारम्बार बोल जाए तो वह यथार्थ प्रतीत होने लगता है। यह इस का एक जीवंत उदाहरण है। ई० 2014 में मोदीजी ने एक भाषण में कहा था कि देश के बाहर इतना काला धन जमा है कि यदि उसे भारत लाया जाए तो प्रत्येक नागरिक के हिस्से में 15 लाख रुपये आ सकते हैं। जाहिर है कि यह काला धन की समस्या की विराटता को दर्शाने के लिए एक उपमा दी गई थी, जिसे विपक्ष ने जान बूझ कर इस प्रकार से जनता में फैलाने का कुप्रयास किया। हाँ उस काले धन को देश में वापिस लाने मे सरकार विफल रही। 

2.   दो  करोड़ नौकरी के वादे पर भाजपा सरकार पूरी तरह विफल:

         अपने प्रथम कार्यकाल के प्रारंभ में भाजपा सरकार ने 2 करोड़ युवाओं को रोजगार देने का वादा किया था। लेकिन विपक्ष ने इसे इस प्रकार से पेश किया कि मानों 2 करोड़ सरकारी नौकरी देने का वादा था। भारत की जनसंख्या के मद्देनजर बेरोजगारी एक ऐसी समस्या है जिस को पूरी तरह से समाप्त करना किसी के बूते की बात नहीं। तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था, बढ़ते startups, मुद्रा योजना जैसी योजनाओं से गैर-सरकारी सेक्टर में रोजगार की अपार संभावनाएं पैदा हुई हैं। कितने युवाओं को रोजगार मिला है इस का सटीक आकलन संभव नहीं है। लेकिन नए कर्मचारी भविष्य-निधि (Employees Provident Fund or EPF) के आंकड़ों से सटीक अनुमान अवश्य लगाया जा सकता है।

          सितंबर 2017 से EPF डाटा इंटरनेट पर उपलब्ध है जो इस प्रकार है: -

Financial year                             New Members added (in Lakhs)

2017-18(सितंबर 17 से )                              15.5   

2018-19                                                 61.1

2019-20                                                78.6

2020-21                                                77.1

2021-22                                                122.3

2022-23                                                138.5

2023-24 up to Dec 2023                       108.4

                    TOTAL                        601.5

          अर्थात सितंबर 2017 से दिसंबर 2023 तक (6 वर्ष 3 माह) 6 करोड़ प्राइवेट सेक्टर कर्मचारियों के नए EPF अकाउंट खोले गए। अब जरा EPF को समझें।

          उन सभी उपक्रमों को, जिन में 20 या अधिक कर्मचारी हों, EPF अनिवार्य है। यदि कुल कर्मियों की संख्या कम हो तो यह optional है। नए मेंबरों का वेतन कम से कम 15 हजार रुपये प्रतिमाह होना चाहिए। EPF में नौकरी देने वाले को भी उतना ही अंशदान देना होता है जितना कर्मचारी जमा करवाता है। इसी प्रकार सरकारी कर्मियों का GPF अकाउंट खोल जाता है।

          यह कहना अतार्किक होगा कि छः वर्षों में 6 करोड़ लोगों को नौकरी मिली। कुछ उपक्रम ऐसे भी होंगे जिन में कर्मियों की संख्या 20 से कम थी और उपरोक्त समय में यह बढ़ कर 20 से अधिक हो गई और उन्हें EPF में शामिल होना पड़ा। यदि इस प्रकार के उपक्रमों को अधिक से अधिक 50% भी माना जाए तो भी यह कहा जा सकता है कि छः वर्षों में 3 करोड़ लोगों को नौकरी मिली। इस में सरकारी नौकरियां शामिल नहीं हैं। बेरोजगारी कि दर 2024 में अपने न्यूनतम स्तर यानि लगभग 2% पर आ गई है। मनरेगा और बड़े बड़े निर्माण कार्यों में मिलने वाला अनियमित व अल्पकालिक रोजगार इस के अतिरिक्त है। 

3.   महंगाई कमर-तोड़: (गैस सिलिन्डर)

         महंगाई विपक्ष के हाथ में एक सदाबहार मुद्दा है चाहे वास्तव में महंगाई हो या नहीं। अर्थ-शास्त्रियों की मानें तो देश में 5-6% महंगाई दर आवश्यक है अन्यथा उत्पादकों में अधिक उत्पादन करने की प्रेरणा कम हो जाती है। वर्ष 2023-24 में यह दर न्यूनतम यानी 4.5 – 6% रही है। अतः धरातल पर महंगाई कोई मुद्दा ही नहीं है चाहे विपक्ष कितना ही शोर मचा ले।

                    यह सही है कि 2014 में सब्सिडी वाले एलपीजी सिलिन्डर का मूल्य 410 रु था जो मार्च 2024 में 828.50 रु हो गया। कारण सब्सिडी में कमी होना रहा। गैस की खपत में अद्वितीय वृद्धि के कारण सरकार सब्सिडी काम करने के लिए बाध्य हो गई। अप्रैल 2014 में भारत में 14.52 करोड़ कनेक्शन थे जो मार्च 2023 में दोगुने से अधिक 31.36 करोड़ हो गए। यानी 116% बढ़ोतरी।

4.   पेट्रोल-डीज़ल की अनियंत्रित महंगाई:

         यदि पेट्रोल डीजल कि बात की जाए तो यह सर्वविदित है कि पिछले कुछ वर्षों से कीमत को भाजपा सरकारों द्वारा VAT घटा कर नियंत्रित करने की कोशिश की गई है।

          पेट्रोल की कीमत दिल्ली में जनवरी 2004 से अप्रैल 2014 तक 35.71 -72.26 रुपये प्रति लीटर बढ़ी यानी 10 वर्षों में दोगुनी (102.4% की बढ़ोतरी) हो गई।  जबकि 2014 से 2024 तक भाजपा शासन में यह बढ़ोतरी केवल 32.9 % रही। लगभग यही हाल डीजल का भी रहा है। अतः ये कहना गलत है कि भाजपा शासन में महंगाई बढ़ गई।

5.   किसानों की आय को दुगना करने का वादा:

          किसानों की आय में कितनी वृद्धि हुई है यह जानने का कोई उचित तरीका उपलब्ध नहीं है। गंदम की सरकारी खरीद मूल्यों से कुछ अंदाज लगाया जा सकता है। UPA काल में 2014 में यह 1400 रु प्रति क्विंटल था जो कि 2023 में 2125 रु हो गया। यानी 51.8 % कि बढ़ोतरी दर्ज की गई। इस कालखंड में गंदम के उत्पादन में 13% कि वृद्धि हुई। यानी यह कहा जा सकता है कि किसानों की आय लगभग डेढ़ गुना हुई है।

          यहाँ यह कहना तर्कसंगत है कि भाजपा द्वारा कृषि कानून किसानों की आय में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए ही लाए गए थे लेकिन वे दलगत राजनीति के शिकार हो गए।

6.    देश पर भरी कर्ज:

          विपक्ष द्वारा संचालित यह एक बड़ा असत्य है। विपक्ष के नेता भारत पर 200 लाख करोड़ के कर्ज की बात करते थकते नहीं। लेकिन जनता को सत्य नहीं बताते। पहले जानें कि सरकार पर कर्ज के माने क्या हैं।

          सभी सरकारें विकास कार्यों के लिए ऋण लेतीं हैं। यह मूलतः दो प्रकार का होता है।

          बाह्य ऋण (External debt): यह ऋण बाहरी देशों से डॉलर में लिया जाता है अथवा अधिक आयात व कम निर्यात के कारण पैदा होता है। इस पर आमतौर पर ब्याज भी अधिक होता है। अर्थशास्त्र विशेषज्ञों के अनुसार देश का बाह्य ऋण GDP के 30% से अधिक होना हानिकारक है। 2023 में भारत पर $635 Bn. यानी लगभग 53 लाख करोड़ रु का बाह्य ऋण था जो GDP का लगभग 18% है। वर्ष 2014 में यह अनुपात 23.2% था। यानी भाजपा काल में बाह्य ऋण में भारी  कमी देखी गई।

          आंतरिक ऋण (Internal Debt): यह ऋण सरकार बैंक, सरकारी उपक्रमों, LIC इत्यादि से लिया जाता है। जाहिर है इन संस्थाओं के पास धन देश के नागरिकों की संचित धनराशि से ही आता है जिसे सरकारें ब्याज सहित लौटने के लिए बचन-बद्ध होती हैं। यदि नागरिक खुशहाल होंगे तभी तो वे बचत कर पाएंगे। विशेषज्ञों के अनुसार घरेलू ऋण GDP के 80% से नीचे रहना एक उत्तम आर्थिक स्थिति दर्शाता है। 2023 में भारत का घरेलू ऋण 156 लाख करोड़ रु है जो कि GDP का लगभग 57% है। दोनों प्रकार के ऋण भारत की मजबूत आर्थिक स्थिति की ओर इशारा करते हैं। वर्ष 2014 में यह अनुपात केवल लगभग 43% था। यानी लोग अधिक बचत कर पाने की स्थिति में ही नहीं थे।

          भारत का कुल ऋण 209 करोड़ (2023) है अतः ऋण: GDP अनुपात 74% हुआ। 2013 में यह अनुपात 66.1% था। अब जरा विकसित देशों के ऋण: GDP अनुपात पर भी नजर डालें :-

          USA 123%, Japan 255%, France 110%, Italy 144%, Canada 106%, G-7 देश औसत 128% etc.

 7.   अदानी – अम्बानी  की सरकार और अमीरों का कर्ज माफ:

          राहुल गांधी का एक और प्रिय वाक्य है कि मोदी सरकार अंबानी- अदानी की सरकार है। यहाँ यह समझना जरूरी है कि खुली अर्थव्यवस्था में निजी कंपनियां आवश्यक हैं। ये सभी उद्योगपति काँग्रेस के शासन में भी फले-फूले हैं। भारत को विश्व की तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति इन के सहयोग के बिना नहीं बनाया जा सकता। दूसरे, कंपनियों का धन केवल इन के मालिकों का नहीं होता। इन में आम जनता भी लाखों की संख्या में निवेशकों के रूप में शामिल होती है तथा ये कंपनियां लाखों लोगों को रोजगार भी देती हैं। यहाँ तक कि विपक्ष शासित प्रदेशों में भी इन का निवेश होता है जिस पर अक्सर राहुल जी चुप्पी साध लेते हैं।

          दूसरा भ्रम यह फैलाया जाता है कि बड़ी कंपनियों का लाखों करोड़ रुपये का कर्ज मोदी सरकार ने माफ कर दिया है जो कि सरासर झूठ है। विपक्ष जान-बूझ कर बट्टे खाते में डालने को माफ करना कह कर जनता को गुमराह कर रहा है। बैंकिंग भाषा में write off (बट्टे खाते में डालना) करना और waive off (माफ करना) के मतलब अलग होते हैं। Write off का मतलब होता है कि ऋण को बैंक के चालू अकाउंट से हटा कर उस ऋण को अन्य संस्था जो उगाही करती है, के हवाले कर देना।

          विपक्ष उद्योगपतियों का 12 से 18 लाख करोड़ ऋण माफी का बात कर रहा है। RBI के अनुसार 2022-23 में बैंकों द्वारा 2.09 लाख करोड़ रुपए का ऋण राइट ऑफ किया गया। मार्च 2023 तक पिछले 9 वर्षों में कुल 14.57 लाख करोड़ का ऋण राइट ऑफ किया गया है जिस में लगभग आधा बड़े उद्योग घरानों से संबंधित है (Economic Times 7-8-2023)। इस में से लगभग 2 लाख करोड़ ऋण की उगाही हो चुकी है तथा शेष ऋण की उगाही की जा रही है। अतः जब राहुल जी कहते है कि सरकार ने अदानी-अंबानी  का 16 लाख करोड़ का ऋण माफ कर दिया है तो भ्रमित न हों।

8.   नोटबंदी से अर्थ-व्यवस्था चौपट हुई:

          8 नवम्बर 2016 को 8 बजे सांय, प्रधान मंत्री श्री मोदी ने टीवी पर आकर घोषणा कर दी थी कि उस दिन रात 12 बजे के बाद 500 और 1000 रु के नोट अमान्य हो जाएंगे। अचानक हुई इस घोषणा से देश स्तब्ध रह गया। विपक्ष ने किस प्रकार प्रतिक्रिया दी वह देश को मालूम है।

          अब जरा नोटबंदी से पहले प्रचलित वातावरण की बात करें। आम धारणा थी कि भारत में काले धन की एक समानान्तर अर्थ-व्यवस्था चल रही थी। नकली नोटों का प्रचालन भी भारी मात्रा में था। यहाँ तक कि नोट पड़ोसी शत्रु-देशों में सरकारी सहयोग से छप कर देश में तस्करों व आतंकवादियों द्वारा भारी मात्रा में लाए जाते थे। रियल एस्टेट का तो कहना ही क्या। 75% कीमत तो काले धन में ही अदा करनी होती थी।  राजनैतिक दलों को उद्योग-जगत चंदे का अधिकतर भाग काले धन से देते थे जिस का कोई लेखा -जोखा नहीं रखा जाता था। इसी काली अर्थव्यवस्था पर चोट करने के लिए मोदी जी ने नोटबंदी कर दी।

          नोटबंदी का पहला असर छोटे उद्योग-धंधों पर पड़ा जो अधिकतर काले धन से चलते थे। वैध धन की कमी के चलते रोजगार प्रभावित हुआ। रियल एस्टेट में भी पैसे की कमी से सुस्ती आ गई। बड़ी कम्पनियों का काम पहले की तरह बैंकों से चलता रहा और अधिक प्रभावित नहीं हुआ।

          विपक्ष का कहना था कि 99.9% बंद हुई नकदी तो बैंक में वापिस आ गई, तो काला धन कहाँ था? बंद नोटों को 2.5 लाख प्रति व्यक्ति, बिना पूछे वापिस लिया जा रहा था। अधिकतर कारोबारियों ने अपने मित्रों, रिश्तेदारों, मजदूरों इत्यादि के जरिए बंद हुए नोट बैंक में जमा करवाए। कारोबारियों ने अपने कर्मियों को कई महीनों के वेतन का अग्रिम भुगतान कर दिया। इस प्रकार काले धन को ‘ठिकाने’ लगा दिया।

          तो क्या, नोटबंदी का कोई लाभ ही नहीं हुआ?

          नहीं ऐसा नहीं है। लगभग दो लाख Shell कंपनियां बंद हो गईं। पाकिस्तान में छपे करोड़ों रु के नकली नोट बेकार हो गए। आतंकवाद के लिए आने वाले धन का स्रोत सूख गया। एक वर्ष में आयकर दाता लगभग 2 करोड़ से बढ़ कर लगभग 4 करोड़ हो गए।

          आयकर जो नोटबंदी से पहले 2015-16 में 2.08 लाख करोड़ था 2017-18 में बढ़ कर 4.73 लाख करोड़ रुपए हो गया। इस के बाद तो अर्थीकि में उछाल आ गया। 2022-23 में 8.33 और 2023-24 में 10.60 लाख करोड़ रु का आयकर एकत्रित किया गया।

         2016-17 में नोटबंदी के कारण रोजगार में जो कमी आई थी, अगले 2-3 वर्षों में उस में बहुत सुधार आया जिस का जिक्र में पहले ही नए EPF खुलने के सिलसिले में कर चुका हूँ यानी 2023 तक 6 करोड़ नए EPF अकाउंट खुले।

          विश्व में भारत आर्थिक दृष्टि से 10वें स्थान से एक बड़ी छलांग लगा कर 5वें स्थान पर आ गया जब कि UPA काल में 12वें स्थान से केवल 10वें स्थान तक पहुँच पाया था। ऐसे में यह कहना कि नोटबंदी से हानि हुई पूरी तरह से तर्कहीन है।

 9.   रुपए का भारी अवमूल्यन :

          कुछ लोग डॉलर के मुकाबले रुपए की गिरती कीमत से भी बहुत चिंतित हैं और वे इस अवमूल्यन के लिए मोदी सरकार को जिम्मेवार ठहराते हैं। आइए सच्चाई जानने का प्रयत्न करते हैं।

          आजादी के बाद 1950 में एक डॉलर का मूल्य 4.76 रु था। हैरानी की बात है अगले 10 वर्षों तक यह स्थिति बिल्कुल स्थिर रही। जाहिर है इस बात का देश के विकास से कोई लेना देना नहीं है क्योंकि इस दशक में भारत कितना विकसित था सभी जानते हैं। हाँ इस का तालुक दोनों देशों यानी अमेरिका और भारत की तुलनात्मक विकास दर से जरूर रहा होगा क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का दशक होने के कारण अमेरिका और पश्चिमी देशों में भी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी।

          उसके बाद 1960-70 के दशक में रुपए के मूल्य में डॉलर के मुकाबले 58%, 1971-80 में 0.05%, 1981-90 में 122%, और 1991-2000 में 156% अवमूल्यन हुआ। याद दिला दूँ कि सुप्रसिद्ध अर्थ-शास्त्री श्री मनमोहन सिंह जी के दशक में रुपए के मूल्य में सब से अधिक, यानी 156% गिरावट आई।

          वर्ष 2004 में रुपए का मूल्य 45.32 प्रति डॉलर था। UPA काल में यानी 2004 से 2014 तक यह 37% घट कर 62.33 रु हो गया था। उस के बाद के दस वर्षों में यानी 2014 से 2024 तक यह 33% घट कर 83.00 रु पर आ गया है। यह गिरावट 1970-80 के दशक के बाद अब तक सब से कम है। यहॉं ये बताना तर्कसंगत रहेगा कि डॉलर के इलावा अन्य विदेशी मुद्राओं की तुलना में भारतीय रुपए की स्थिति बेहतर रही है।

10.   लोकतंत्र खतरे में, मोदी तानाशाह:

          एक पूरा इको-सिस्टम प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी को तानाशाह सिद्ध करने में लगा हुआ है। एक प्रसिद्ध यू-ट्यूबर कहता है कि वे 80% तानाशाह बन चुके हैं। न जाने 80% तानाशाह क्या होता है? जब तक भारत में संविधान के अनुसार चुनाव होते रहेंगे, किसी भी प्रधानमंत्री का तानाशाह होना असंभव है। इंदिरा जी ने एक प्रयास अवश्य किया था जो सफल नहीं रहा। संविधान को निरस्त करना लगभग असंभव है।

11.  CBI और ED का सरकार द्वारा दुरुपयोग:

          तानाशाही के संदर्भ में एक अन्य तर्क। भाजपा काल में केन्द्रीय एजेंसीयां, CBI और ED का सरकार द्वारा दुरुपयोग, अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदीयों को ठिकाने लगाने के लिए किया जा रहा है। विपक्ष का कहना है कि (1) क्या भाजपा में कोई भ्रष्टाचारी नहीं है क्यों कि ये एजेंसीयां केवल विपक्ष के नेताओं को टारगेट कर रही हैं और (2) जब कोई नेता भाजपा में शामिल हो जाता है तो उस के सारे पाप धुल जाते हैं और उस के विरुद्ध कोई कार्रवाही नहीं होती। आइए जानते है कि ये आरोप कहाँ तक सही हैं।

          मोदी जी ने 2014 में प्रधान मंत्री बनते ही घोषणा की थी कि “न खाऊँगा और न खाने दूंगा”। जाहिर था कि भ्रष्टाचार पर वे कोई समझौता नहीं करने वाले थे। CBI और ED को कार्य करने की छूट दी गई और भ्रष्टाचार पर हल्ला बोल दिया गया। लेकिन ये बात जनता के गले नहीं उतरती कि भाजपा के नेता सभी ईमानदार हो गए। हो सकता है कि शीर्ष नेता के ईमानदार होने के कारण पार्टी में भ्रष्टाचार में कमी आई हो। यह भी सही है कि काँग्रेस-काल के बड़ी बड़े घोटाले, उसी सरकार के शासनकाल में ही बेपरदा हुए थे।

          2014 के बाद केंद्र में तो भाजपा सरकार थी लेकिन बहुत से राज्यों में विपक्षी पार्टियों की सरकारें रही हैं। उन्होंने भाजपा के नेताओं का भ्रष्टाचार क्यों नहीं पकड़ा? यहाँ बताना चाहूँगा कि आपराधिक विधान में राज्य पुलिस को भी वही शक्तियां हैं जो CBI और ED को हैं। यहाँ तक कि PMLA (Prevention of Money Laundering Act) के अंतर्गत Chance Recovery के बाद, अथवा अपराध की पूर्व सूचना देकर स्थानीय पुलिस मामले को ED को आगे की कार्यवाही के लिए भेज सकती है। लेकिन उन्होंने ऐसी कोई भी कार्रवाही भाजपा नेताओं के खिलाफ नहीं की।

          जनता तो भ्रष्टाचार-मुक्त समाज चाहती है। यदि भाजपा अन्य दलों के भ्रष्टाचारियों को पकड़ती है तो यह अच्छी बात है। जब विपक्ष सत्ता में हो तो वे भाजपा के भ्रष्टाचार को पकड़ें। देश व समाज का तो भला ही होगा। हाँ, झूठे अभियोगों के खिलाफ हमारे पास सशक्त न्यायपालिका है। हमें उस पर विश्वास रखना होगा।

          भ्रष्टाचार के विरुद्ध मोदी का वार निम्न तथ्यों से उजागर होता है। वर्ष 2004 से 2014 तक ED द्वारा 112 छापों में 5346.16 करोड़ रुपए की नकदी व संपती बरामद की गई जब कि 2014 से 2023 तक 3010 छापों में 99,356 करोड़ रु की सम्पति बरामद की गई। इन में से 23 अभियुक्तों को सजा हो चुकी है तथा इनकी 869.31 करोड़ रु की सम्पति जब्त हो चुकी है। जाहिर है भाजपा काल में ED की कार्य कुशलता में भारी उछाल दर्ज किया गया।

12. चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds) भाजपा का बड़ा घोटाला:

          यह बात किसी से छुपी नहीं है कि चुनावों में राजनीतिक दलों को भारी खर्च उठाना पड़ता है। ये पैसा इन दलों द्वारा जनता, उद्योगपतियों तथा व्यापारियों द्वारा दिए गए चंदे से जुटाया जाता है। जाहिर है कि व्यापारी चंदा तभी देगा जब उसे उस दल से व्यापार में लाभ की उम्मीद हो। हालांकि कोई भी दल ये बात सार्वजनिक रूप से मानेगा नहीं।

          अब जरा 1950 से लेकर 2014 तक कि स्थिति पर गौर करें। उद्योगपति और व्यापारी इन दलों को अधिकतर चन्दा काले धन के रूप में देते थे जिस का कोई हिसाब किताब नहीं रखा जाता था। हाँ जो चंदा बैंक के जरिए दिया जाता है उस पर चन्दा देने वाला आयकर में छूट ले सकता है। राजनैतिक दलों को इस धन पर आयकर से छूट थी अतः वे भी इस धन का हिसाब-किताब के लिए बाध्य नहीं थे। इस तरह चुनाव काली अर्थव्यवस्था के लिए स्वर्ग के सामान थे।

          2014 में मोदी जी ने आने के बाद काली अर्थव्यवस्था पर चोट करनी शुरू कर दी। पहली चोट 2016 में नोटबंदी के रूप में आई। लेकिन शायद इतना करना काफी नहीं था। सन 2017 में Electoral Bonds Scheme का प्रस्ताव लाया गया जो सदन से पास होकर 2018 में लागू हो गया। अब राजनैतिक दलों को चन्दा SBI के जरिए देना जरूरी था। इस के अतिरिक्त दलों को उनके द्वारा लिए गए चंदे पर आयकर का प्रावधान भी किया गया। अब चंदे के धन का दलों द्वारा लेखा जोखा रखना अनिवार्य हो गया। चुनावों में काले धन का उपयोग भी बहुत हद तक सीमित हो गया। यह बात विपक्षी दलों को रास नहीं आई।

          2024 के चुनावों के ठीक पहले सर्वोच्च न्यायालय ने उक्त स्कीम को कुछ तकनीकी आधार पर असंविधानिक घोषित कर दिया और विपक्ष को इसे एक बड़ा  घोटाला कहने का स्वर्णिम अवसर मिल गया। यदि मोदी जी की नीयत खराब होती तो वे ये स्कीम लाते ही क्यों? भाजपा भी अन्य दलों की तरह काले धन पर मौज करती जिस का कोई लेख-अभिलेख भी रखना आवश्यक नहीं था। चुनावी बॉन्ड में, SBI के बीच में आने से सब कुछ रिकार्ड पर या गया। यह हास्यस्पद है कि इस स्कीम के बारे में कहा गया की इसमें पारदर्शिता नहीं है। क्या इस से पहले पारदर्शिता थी?

          लगभग सभी दलों ने चुनावी बॉन्ड से चन्दा लिया। भाजपा ने 6060.5 करोड़, TMC ने 1607.5 करोड़, काँग्रेस ने 1422 करोड़ का चन्दा लिया। स्वयं चन्दा लेकर काँग्रेस कहती रही की घोटाला बीजेपी ने किया। कहा जा रहा है कि भाजपा ने चन्दा संदिग्ध लोगों से लिया। लेकिन यदि यह स्कीम न लाते तो यह पता ही कैसे चलता कि किस ने किस को कितना धन दिया है।

13.   बढ़ता गौमांस निर्यात और एक बड़ी निर्यातक कंपनी से चुनावी चन्दा।

          चुनावी बॉन्ड के मुद्दे को विपक्ष ने भुनाने का भरसक प्रयत्न किया। SCI के आदेश पर SBI द्वारा दिए गए विवरण में पाया गया कि एक अल्लाना ग्रुप (Allana Group) कंपनी ने शिवसेना को 5 करोड़ और भाजपा को 2 करोड़ मूल्य के बॉन्ड चंदे में दिए। यू-ट्यूब पर ऐसे वीडियोज़ की बाढ़ आ गई जिसमे पहले भावुकता पूर्ण तरीके से गाय को दिखाया जाता है और फिर बताया जाता है कि भाजपा ने एक बड़ी बीफ निर्यातक कंपनी से चन्दा लिया। आप कहेंगे कि इस में झूठ कहाँ है?

          अल्लाना ग्रुप एक बड़ी बीफ निर्यातक कंपनी है। लेकिन यह बीफ गौमान्स नहीं है। भारत में गौमान्स प्रतिबंधित है। यह निर्यात किया जाने वाला बीफ, भैंस या गौवंश का होता है न कि गाय का और यह प्रतिबंधित नहीं है।  

 14. भाजपा सरकार सिर्फ जुमलों की सरकार: भाजपा द्वारा हिन्दू ध्रुवीकरण का प्रयास:

          अपने दस वर्षों के कार्यकाल में भाजपा सरकार द्वारा किए गए कार्यों की लिस्ट बहुत लंबी है। अतः यह कहना कि मोदी सरकार केवल जुमलों की सरकार रही, कहाँ तक सही है, पाठक स्वयं सोचें। दूसरा बड़ा आरोप है कि मोदी सरकार हिन्दू-मुसलमान करती रही और हिन्दू ध्रुवीकरण का प्रयास कर रही है।

          हो सकता है कि यह किसी सीमा तक सत्य भी हो। लेकिन यह मूलरूप से कांग्रेस की मुसलमान-मुसलमान करने की नीति की प्रतिक्रिया है। कांग्रेस का मुस्लिम तुष्टीकरण किसी से छिपा नहीं है। कांग्रेस की इस नीति के चलते, बंगाल, असम, केरल तथा उत्तरपूर्व के राज्यों में जनसंख्या संतुलन में भारी बदलाव आ गया है जिस के कुप्रभाव अब सामने आने लगे है। उत्तर-पूर्वी राज्यों में, विशेषकर मणिपुर में फैली हिंसा इसी जनसंख्यक असंतुलन का परिणाम है। यदि समय रहते कांग्रेस सरकार ने निर्धनों को लालच दिखा कर, व बलपूर्वक, धर्मांतरण के विरुद्ध कार्यवाही की होती तो आज की हिंसा न देखनी पड़ती।

          लेकिन दुःखद तो यह है कि काँग्रेस ने अभी भी इतिहास से सबक नहीं लिया। पार्टी का घोषणापत्र अभी भी तुष्टीकरण से ओत-प्रोत है। Personal Law को बल देने,  धार्मिक आधार पर आरक्षण देने की बातें की गई हैं। यहाँ तक कि सरकारी ठेकों में भी धार्मिक आधार पर आरक्षण की बात की गई है जो कि देश के लिए घातक है।

15.   चीन द्वारा भारतीय सीमा पर अतिक्रमण:

          विपक्ष, विशेषकर राहुल गांधी इस विषय में अधिक मुखर रहे है। कुछ ही वर्ष पहले भारत-चीन सीमा पर पैदा हुआ तनाव इस का कारण है। असल में लद्दाख, सिक्किम भूटान सीमा पर ढोकलाम में दोनों पक्षों को अपने patrolling क्षेत्र से पीछे हटना पड़ा है। यहाँ बताना उचित होगा कि यह गश्ती क्षेत्र अधिकतर No-mans लैंड में होता है। अतः यह कहना उचित नहीं है कि चीन ने भारत को सेंकड़ों वर्ग किमी भूभाग हथिया लिया है।

          हाँ भारत का 38 हजार वर्ग किमी क्षेत्र चीन ने नेहरू सरकार में 1962 के यद्ध से पहले ही हथिया लिया था। सन 1951 से 1957 तक चीन लद्दाख में भूमि पर कब्जा करता रहा और एक सड़क का निर्माण करता रहा और भारत सरकार आजादी की खुशी में सोई रही। इस बात का पता 1957 में लगा लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। इस क्षेत्र को वापिस लेना तो दूर, भारत सरकार ने अपनी अकर्मण्यता से तिब्बत भी चीन को गंवा दिया, अन्यथा चीन की सीमा तो भारत को कहीं छूती भी नहीं थी। और भारत की बेचारगी तो देखिए, हमीं ने सब से पहले तिब्बत पर चीन के कब्जे को मान्यता भी दे दी। अब जाकर, मोदी जी के प्रयत्नों से अमेरिका ने माना है कि तिब्बत को आजादी का अधिकार है।

16.   तीस लाख सरकारी नौकरियां:

          काँग्रेस का चुनावी वादा कि सरकार बनाते ही देश के युवाओं को तीस लाख सरकारी नौकरियों के लिए भर्ती किया जाएगा। कुछ ही समय पहले राहुल जी ने अपने भाषणों में कहा था के केन्द्र सरकार और इस के उपक्रमों में 30 लाख पद रिक्त हैं। ये 30 लाख नौकरियों की बात कि उत्पत्ति यहाँ से हुई।

          लेकिन ये बात सत्य से दूर और भ्रामक है। 2023 में राज्य सभा प्रश्न के उत्तर में सरकार ने माना कि इस समय केन्द्रीय सरकार में लगभग 9.5 लाख रिक्तियां हैं जिन को अगले 1.5 वर्षों में भरने के लिए प्रधानमंत्री ने मिशन मोड में कार्य करने के लिए कहा है। केन्द्रीय सरकार में कुल 40.65 लाख के करीब स्वीकृत पद हैं। इसलिए यह कहना कि 30 लाख नौकरियां दी जाएंगी, विश्वसनीय नहीं है।

17.   विपक्ष द्वारा मान्य तथ्य:

          श्री गांधी द्वारा अपने चुनावी भाषणों में प्रचारित झूठों की सूची लंबी है जिन पर एक पूरी पुस्तक लिखी जा सकती है। मेरा ऐसा कोई दावा नहीं है कि भाजपा के नेताओं ने कोई झूठ न बोला हो। लेकिन मेरे विचार में मोदी जी ने झूठे वाक्यों पर काफी हद तक संयम रखा है। यदि पाठकों को कोई मोदी द्वारा प्रचारित तथ्य झूठ लगता हो तो कृपया लिखें। मैं उस पर सच्चाई सामने लाने का प्रयत्न करूंगा।

          आप को हैरानी होगी कि मोदी सरकार से सम्बंधित निम्न-लिखित विषयों पर विपक्ष अधिकतर चुप है। उनकी चुप्पी से सपष्ट है कि वे इन विषयों पर सरकार की उपलब्धियों से संतुष्ट हैं।

Ø  राष्ट्रीय सुरक्षा व अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध:

Ø  मोदी सरकार की जन-कल्याण योजनाएं:

Ø  विदेशी मुद्रा भंडार 2014 -2024 में $304 Bn से बढ़ कर $648 बिलियन हुआ।

Ø  देश का स्वर्ण भंडार 2024 में 828 टन कि रिकॉर्ड ऊंचाई पर।

Ø  Make in India

Ø  देश के मेगा प्रोजेक्ट, जिन में बड़े बड़े एक्स्प्रेस ways, सुरंगें, तीव्र-गामी ट्रेन इत्यादि शामिल हैं। 

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